बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 गृह विज्ञान बीए सेमेस्टर-1 गृह विज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 गृहविज्ञान
प्रश्न- विकासात्मक अवस्थाओं से क्या आशर्य है? हरलॉक द्वारा दी गयी विकासात्मक अवस्थाओं की सूची बना कर उन्हें समझाइए।
उत्तर -
विकासात्मक अवस्थाओं का आशय विकास प्रगतिशील परिवर्तनों की वह श्रंखला है जो कि लगातार चलती रहती है। परिवर्तनों का चक्र जन्म से शुरू होता है और मृत्यु तक चलता रहता है। अवस्था के बदल जाने पर परिवर्तन के लक्षण भी बदल जाते हैं। बाल मनो वैज्ञानिकों ने विकास की सम्पूर्ण प्रक्रिया को विभिन्न अवस्थाओं में विभाजित किया है। सभी अवस्थाओं के लक्षण भिन्न-भिन्न होते हैं। कोई भी लक्षण अपने पूर्व लक्षणों पर आधारित नहीं होता है। विकास की विभिन्न अवस्थाओं को समझाने के लिए हरलॉक ने इन्हें अलग-अलग तरीकों से विभाजित किया है। विकास की दो अवस्थाएँ है
1. जन्म से पूर्व की अवस्था
(Prenatal Stage)
(1) बीजावस्था अथवा डिम्बावस्था (Period of ovum Orzyotic Stage) बीजावस्था की शुरुआत गर्भाधान अथवा निषेचन से होती है। इस अवस्था की अधिकतम अवधि दो सप्ताह है। यह अवस्था दो सप्ताह तक चलती है तथा दूसरे सप्ताह के अन्त तक पूर्ण होती है। इस अवस्था में स्त्री प्रजनन कोशिका जिसे अण्डाणु कहते हैं इसका पुरुष प्रजनन कोशिका के साथ संयोग होता है। पुरुष प्रजनन कोशिका को शुक्राणु कहते हैं। इसी अवस्था में नए जीवन का सृजन होता है।
डिम्बकाल में निषेचित डिम्बों की संख्या में गुणात्मक वृद्धि होती है। डिम्ब, डिम्बवाहिनी नलिका से खिसक कर गर्भाशय में प्रवेश करता है तथा गर्भाशय की दीवार की सहायता से अपना स्थान सुरक्षित कर लता हैं। यह क्रिया गर्भ प्रतिस्थापन कहलाती है यह गर्भाधान के पूर्ण होने के लगभग दस दिन बाद होती है। डिम्ब की बाहरी पर्त प्लासेन्टा कहलाती है। प्लोसेन्टा आहारनाल तथा झिल्ली का निर्माण करती है। आन्तरिक पर्त शिशु का विकास करती है।
(2) भ्रूणकाल (Period of Embryo) - गर्भाधान के दो सप्ताह पश्चात से 10 सप्ताह तक की विकास की अवस्था को भ्रूणकाल कहते हैं। शिशु विकास की यह महत्वपूर्ण अवस्था है। डिम्बकाल के बाद दो माह की अवस्था विकास के दृष्टिकोण से अत्यन्त महत्वपूर्ण है। भ्रूणकाल की अवस्था में विकास के प्रमुख प्रकार हैं
(1) भ्रूण मानव की आकृति ग्रहण करने लगता है
(2) भ्रूण के सभी के सभी प्रमुख विकास शुरू हो जाते है जो इस क्रम में होते हैं सिर के क्षेत्र का विकास तथा घड़ के क्षेत्र का विकास
(3) शरीर के लिए आवश्यक सभी आन्तरिक एवं वाह्य स्वरूपों की विशेषताएँ निश्चित हो जाती है
(4) भ्रूण का विकास हो जाता है तथा वह गर्भ में भ्रमण करने लगता है।
(5) शिशु का पोषण करने तथा उसकी सुरक्षा करने हेतु प्लासेन्टा आहारनाल एवं शिशु झिल्ली का निर्माण हो जाता है।
(3) शिशुकाल - गर्भाधान के दूसरे माह के बाद से शुरू से होने वाली प्रक्रिया को शिशु काल कहते हैं, यह प्रक्रिया जन्म होने तक चलती रहती है। पहली अवस्था में बालक के स्वरूप एवं क्रियाशीलता में वृद्धि होती है परन्तु इस अवस्था में बालक विकसित होकर पूर्ण मनुष्य का स्वरूप ग्रहण कर लेता है।
तीसरे माह के अन्त होने तक लगभग सभी आन्तरिक अंगों के अवयव पर्याप्त रूप से विकसित होकर अपनी क्रियाएँ करना शुरू कर देते हैं। आन्तरिक अंगों के विकास की प्रक्रिया बढ़ती रहती है लगभग 15 सप्ताह बाद शिशु के हृदय की धड़कन तीव्र हो जाती है तथा वह आसानी से सुनी जा सकती है। पाँचवें माह तक सभी अन्तरिक अंगों का अवयव अपना-अपना स्थान ग्रहण कर लेते है और सम्बन्धित क्रियाएँ सुचारु रूप से करने लगते हैं। सातवें माह के अंत तक यदि बालक निश्चित अवधि के पूर्व भी जन्म लेता है तो वह मरता नहीं है बल्कि सभी क्रियाओं को करता हुआ जीवित बना रहता है। आठवें महीने के अन्त तक बालक पूर्ण बालक बन जाता है तथा नवें महीने में बालक का भार कम हो जाता है।
2. जन्म के बाद की अवस्था
(Postnatal Stage)
(4) (A) नवजात काल ( Infancy) यह अवस्था जन्म के तुरन्त बाद शुरू हो जाती है। यह विकास चक्र की सबसे छोटी अवस्था है, यह अवस्था अत्यन्त महत्वपूर्ण है क्योंकि इस समय शिशु को माँ के अन्दर के संसार में अपने आपकी समन्वित करना होता है। इसी अवस्था को दो भागों में विभाजित किया गया है (1) आहार नाल को काटने के पूर्व की अवस्था (२) आहार नाल को काटने के बाद की अवस्था। जन्म लेने के पन्द्रह से बीस मिनट तक बालक वाह्य वातावरण के साथ सामंजस्य स्थापित करने का कोई प्रयास नहीं करता है। इस अवस्था के बाद माँ के शरीर से बालक को जोड़ने वाली आहार नाल काट दी जाती है तथा वह नवीन वातावरण के प्रति प्रतिक्रिया करना शुरू कर देता है। यही विशेष घड़ी है जब बालक नवीन वातावरण के साथ समायोजन स्थापित कर अपने आपको वातावरण के अनुकूल बनाने का प्रयास करता है।
(5) B शैशवकाल ( Babhood) यह अवस्था बालक के जीवनचक्र में अत्यन्त महत्वपूर्ण अवस्था है। इस अवस्था में बालक उन सभी नियमों की प्रारम्भिक जानकारी प्राप्त करता है जो नियम सामाजिक जीवन के पदार्पण के लिए आवश्यक हैं, इन्हीं नियमों के आधार पर बालक के आगामी विकास की नीव रखी जाती है। परिवर्तनों के दृष्टिकोण से यह अत्यन्त ही तीव्र प्रतिक्रिया है। शैशवकाल में ही बालक चलना, ठोस भोजन लेना, बोलना सीखता है। इस अवस्था की प्रमुख विशेषताएँ है- मलमूत्र विसर्जन पर नियंत्रण, उत्तेजनशीलता तथा सामाजिक कार्यक्रमों की जानकारी प्राप्त करना। शैशवकाल की अवस्था दो वर्ष तक होती है।
(6) C - बाल्यकाल (Childhood) - यह शैशव काल के बाद की अवस्था होती है। दो वर्ष के बाद से बारह वर्ष की अवस्था को बाल्यकाल कहते हैं। इस अवस्था में विकास अत्यन्त तीव्रगति से होता है। बाल्यकाल की अवस्था को दो भागों में विभाजित किया गया है
(1) प्रारम्भिक बाल्यकाल (Initial Childhood) - यह अवस्था दो वर्ष से छः वर्ष तक की होती है। यह अवस्था समस्या उम्र, खिलौने उम्र तथा पूर्व माध्यमिक विद्यालय अवस्था कहलाती है। बाल मनोवैज्ञानिकों ने इस अवस्था को खोजी उग्र प्रश्न पूछने की अवस्था आदि नामों से सम्बोधित किया है। इस अवस्था में शारीरिक विकास शैशवकाल की तुलना में धीमी गति से होता है परन्तु हस्त कौशल तथा गत्यात्मक विकास तीव्रगति से होता है।
(2) उत्तर बाल्यकाल (Later Childhood) - बाल मनोवैज्ञानिकों ने बाल्यकाल की इस अवस्था को खेल अवस्था कहा है। यह छः वर्ष से लेकर व्यक्ति के लैंगिक अंगों के परिपक्वता की अवस्था है। इस अवस्था की सबसे बड़ी विशेषता है कि इसमें बालक सामाजिक स्तर पर अनिवार्य व्यवहारों को सीखने का प्रयास करता हैं।
इसी अवस्था में बालक अनेक नए मित्र बनाता है तथा मित्र मण्डली में स्वीकृति पाने, लेने पर बालकों को प्रसन्नता होती है। अतः यह सामंजस्य की अवस्था है।
(7) (D) यौवनोत्सुक अवस्था (Puberty) यौवनोत्सुक वह अवस्था है जिसमें व्यक्तियों में संतान उत्पन्न करने की क्षमता आ जाती है तथा वे इस कार्य के लिए उत्सुक हो जाते हैं। यद्यपि इस अवस्था की निश्चित उम्र नहीं है फिर भी लड़कों में बारह से पन्द्रह वर्ष तथा लड़कियों में ग्यारह से चौदह वर्ष की अवस्था यौवन उत्सुक काल कहलाती है अर्थात यौवनोत्सुक अवस्था सम्पूर्णता को प्राप्त कर लेने की अवस्था है।
(8) (E) किशोरावस्था (Adolescence) परिपक्वता की ओर ले जाने वाली यह अवस्था किशोरावस्था कहलाती है। जब व्यक्ति शारीरिक, मानसिक, सामाजिक तथा संवेगात्मक परिपक्वता को प्राप्त कर लेता है तब तक वह किशोरावस्था के अन्त तक पहुँच जाता है। आरमिक किशोरावस्था तथा उत्तर किशोरावस्था, किशोरावस्था के दो अलग-अलग रूप हैं। आरम्भिक किशोरावस्था तेरह वर्ष से सोलह वर्ष तक की अवस्था है जबकि सत्रह से अठारह वर्ष की अवस्था उत्तर किशोरावस्था कहलाती है। किशोरावस्था एक उतार-चढ़ाव की अवस्था हैं जिसमें जीवन के अनेक अनुकूल तथा प्रतिकूल परिवर्तन होते हैं। किशोरों के व्यवहार में अनेक महत्वपूर्ण परिवर्तन होते है। किशोर अपने व्यक्तित्व, व्यवसाय, शिक्षा तथा सामाजिक नियमों के प्रति बहुत जागरूक हो जाता इस अवस्था में विपरीत लिंग के बालक-बालिकाओं के प्रति उनका आकर्षण स्वाभाविक है। किशोरावस्था एक सन्तुष्ट एवं खुश अवस्था है।
(9) (F) प्रौढ़ावस्था - (Adult Stage) परिपक्वता के बाद की इस अवस्था को प्रौढ़ावस्था कहते हैं। यह माना जाता है कि प्रौढ़ावस्था 19 वर्ष की अवस्था से प्रारम्भ होती है। इस अवस्था में बालक अपनी सम्पूर्ण लम्बाई, शारीरिक, मानसिक, सामाजिक तथा संवेगात्मक परिपक्वता प्राप्त कर लेता है। प्रौढ़ावस्था को तीन भागों में विभाजित किया गया है
(1) आरम्भिक प्रौढ़ावस्था (Initial Adulpe Stage) यह उन्नीस वर्ष से लेकर चालीस वर्ष तक चलती है। इस अवस्था के अन्त तक शारीरिक तथा मनोवैज्ञानिक क्षमताएँ कम होने लगती हैं। इस अवस्था के अन्त तक प्रजनन क्षमता भी कम होने लगती है। इस अवस्था में सामाजिक अपेक्षाएँ बड़ी तेजी से बढ़ती है। इस अवस्था में अनेक प्रकार के आयोजन किए जाते है। आरम्भिक प्रौढ़ावस्था प्रजनन की अवस्था है।
(2) मध्य प्रौढ़ावस्था (Middole Adult Stage) - यह अवस्था 40 से 60 वर्ष तक की अवस्था है। शारीरिक क्षमताएँ इस अवस्था में धीरे-धीरे क्षीण होने लगती हैं और व्यवसाय में रुचि कम हो जाती है, अनुभवों तथा परिपक्वता के आधार पर मानसिक शक्तियाँ रहती हैं तथा काम करती है परन्तु गतिशीलता में कमी आ जाने के कारण समाज में उपेक्षा होने लगती है। इस अवस्था में व्यक्तियों का दृष्टिकोण प्रायः बालकों तथा किशोरों के लिए व्यवहारिक हो जाता है तथा वे उनके व्यवहार को पसन्द न करते हुए भी उनकी उपेक्षा करते हैं।
(3) उत्तर प्रौढ़ावस्था ( Later Adult Stage) इस अवस्था में व्यक्ति अशक्त तथा वृद्ध हो जाता है। अतः यह अवस्था वृद्धावस्था भी कहलाती है। यह अवस्था 60 वर्ष के बाद शुरू होती है तथा मृत्यु तक चलती है। इस अवस्था में व्यक्ति की शारीरिक क्षमताएँ समाप्त हो जाती है तथा उसका विघटन होने लगता है। स्मरण शक्ति कमजोर हो जाती है तथा भूलने की आदत सी हो जाती है। मानसिक शक्ति में कमी व्यक्तिगत आधार पर होती है, जो व्यक्ति अपने पूर्व जीवन में बहुत कार्यकुशल तथा प्रभावी रहे होते हैं या शारीरिक रूप से हृष्टपुष्ट होते हैं उनकी स्मरण शक्ति में कमी का अनुपात कम होता है। इसके विपरीत जो व्यक्ति अपने पूर्व जीवन में कम कार्य कुशल होते हैं उनकी मानसिक शक्ति कमजोर हो जाती हैं। सत्तर वर्ष की आयु के पश्चात व्यक्तियों में भूल जानेन पहचानने के दोष पनपने लगते हैं।
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- प्रश्न- वसा में घुलनशील विटामिन क्या होते हैं? आहार में विटामिन 'ए' कार्य, स्रोत तथा कमी से होने वाले रोगों का उल्लेख कीजिये।
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- प्रश्न- शरीर में लौह लवण की उपस्थिति, स्रोत, दैनिक आवश्यकता, कार्य, न्यूनता के प्रभाव तथा इसके अवशोषण एवं चयापचय का वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- प्रोटीन हीनता के कारण बताइए।
- प्रश्न- क्वाशियोरकर तथा मेरेस्मस के लक्षण बताइए।
- प्रश्न- प्रोटीन के कार्यों का विस्तृत वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भोजन में अनाज के साथ दाल को सम्मिलित करने से प्रोटीन का पोषक मूल्य बढ़ जाता है।-कारण बताइये।
- प्रश्न- शरीर में प्रोटीन की आवश्यकता और कार्य लिखिए।
- प्रश्न- कार्बोहाइड्रेट्स के स्रोत बताइये।
- प्रश्न- कार्बोहाइड्रेट्स का वर्गीकरण कीजिए (केवल चार्ट द्वारा)।
- प्रश्न- यौगिक लिपिड के बारे में अतिसंक्षेप में बताइए।
- प्रश्न- आवश्यक वसीय अम्लों के बारे में बताइए।
- प्रश्न- किन्हीं दो वसा में घुलनशील विटामिन्स के रासायनिक नाम बताइये।
- प्रश्न बेरी-बेरी रोग का कारण, लक्षण एवं उपचार बताइये।
- प्रश्न- विटामिन (K) के के कार्य एवं प्राप्ति के साधन बताइये।
- प्रश्न- विटामिन K की कमी से होने वाले रोगों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- एनीमिया के प्रकारों को बताइए।
- प्रश्न- आयोडीन के बारे में अति संक्षेप में बताइए।
- प्रश्न- आयोडीन के कार्य अति संक्षेप में बताइए।
- प्रश्न- आयोडीन की कमी से होने वाला रोग घेंघा के बारे में बताइए।
- प्रश्न- खनिज क्या होते हैं? मेजर तत्व और ट्रेस खनिज तत्व में अन्तर बताइए।
- प्रश्न- लौह तत्व के कोई चार स्रोत बताइये।
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- प्रश्न- भोजन पकाना क्यों आवश्यक है? भोजन पकाने की विभिन्न विधियों का वर्णन करिए।
- प्रश्न- भोजन पकाने की विभिन्न विधियाँ पौष्टिक तत्वों की मात्रा को किस प्रकार प्रभावित करती हैं? विस्तार से बताइए।
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- प्रश्न- भूनना व बेकिंग में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- खाद्य पदार्थों में मिलावट किन कारणों से की जाती है? मिलावट किस प्रकार की जाती है?
- प्रश्न- मानव विकास को परिभाषित करते हुए इसकी उपयोगिता स्पष्ट करो।
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- प्रश्न . वातावरण से क्या तात्पर्य है? विभिन्न प्रकार के वातावरण का मानव विकास पर पड़ने वाले प्रभावों की चर्चा कीजिए।
- प्रश्न . विकास एवं वृद्धि से आप क्या समझते हैं? विकास में होने वाले प्रमुख परिवर्तन कौन-कौन से हैं?
- प्रश्न- विकास के प्रमुख नियमों के बारे में विस्तार पूर्वक चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- वृद्धि एवं विकास को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- बाल विकास के अध्ययन की परिभाषा तथा आवश्यकता बताइये।
- प्रश्न- पूर्व-बाल्यावस्था में बालकों के शारीरिक विकास से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- पूर्व-बाल्या अवस्था में क्रियात्मक विकास से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- मानव विकास को समझने में शिक्षा की भूमिका बताओ।
- प्रश्न- बाल मनोविज्ञान एवं मानव विकास में क्या अन्तर है?
- प्रश्न- वृद्धि एवं विकास में क्या अन्तर है?
- प्रश्न- गर्भकालीन विकास की विभिन्न अवस्थाएँ कौन-सी हैं? समझाइए।
- प्रश्न- गर्भकालीन विकास को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारक कौन से है। विस्तार में समझाइए |
- प्रश्न- गर्भाधान तथा निषेचन की प्रक्रिया को स्पष्ट करते हुए भ्रूण विकास की प्रमुख अवस्थाओं का वर्णन कीजिए।.
- प्रश्न- गर्भावस्था के प्रमुख लक्षणों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- प्रसव कितने प्रकार के होते हैं?
- प्रश्न- विकासात्मक अवस्थाओं से क्या आशर्य है? हरलॉक द्वारा दी गयी विकासात्मक अवस्थाओं की सूची बना कर उन्हें समझाइए।
- प्रश्न- "गर्भकालीन टॉक्सीमिया" को समझाइए।
- प्रश्न- विभिन्न प्रसव प्रक्रियाएँ कौन-सी हैं? किसी एक का वर्णन कीएिज।
- प्रश्न- आर. एच. तत्व को समझाइये।
- प्रश्न- विकासोचित कार्य का अर्थ बताइये। संक्षिप्त में 0-2 वर्ष के बच्चों के विकासोचित कार्य के बारे में बताइये।
- प्रश्न- नवजात शिशु की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करो।
- प्रश्न- नवजात शिशु की पूर्व अन्तर्क्रिया और संवेदी अनुक्रियाओं का वर्णन कीजिए। वह अपने वाह्य वातावरण से अनुकूलन कैसे स्थापित करता है? समझाइए।
- प्रश्न- क्रियात्मक विकास से आप क्या समझते है? क्रियात्मक विकास का महत्व बताइये |
- प्रश्न- शैशवावस्था तथा स्कूल पूर्व बालकों के शारीरिक एवं क्रियात्मक विकास से आपक्या समझते हैं?
- प्रश्न- शैशवावस्था एवं स्कूल पूर्व बालकों के सामाजिक विकास से आप क्यसमझते हैं?
- प्रश्न- शैशवावस्थ एवं स्कूल पूर्व बालकों के संवेगात्मक विकास के सन्दर्भ में अध्ययन प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- शैशवावस्था क्या है?
- प्रश्न- शैशवावस्था में संवेगात्मक विकास क्या है?
- प्रश्न- शैशवावस्था की विशेषताएं क्या हैं?
- प्रश्न- शैशवावस्था में शिशु की शिक्षा के स्वरूप पर टिप्पणी लिखो।
- प्रश्न- शिशुकाल में शारीरिक विकास किस प्रकार होता है।
- प्रश्न- शैशवावस्था में मानसिक विकास कैसे होता है?
- प्रश्न- शैशवावस्था में गत्यात्मक विकास क्या है?
- प्रश्न- 1-2 वर्ष के बालकों के संज्ञानात्मक विकास के बारे में लिखिए।
- प्रश्न- बालक के भाषा विकास पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- संवेग क्या है? बालकों के संवेगों का महत्व बताइये।
- प्रश्न- बालकों के संवेगों की विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- बालकों के संवेगात्मक व्यवहार को प्रभावित करने वाले कारक कौन-से हैं समझाइये |
- प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास से आप क्या समझते है। पियाजे के संज्ञानात्मक विकासात्मक सिद्धान्त को समझाइये।
- प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- दो से छ: वर्ष के बच्चों का शारीरिक व माँसपेशियों का विकास किस प्रकार होता है? समझाइये।
- प्रश्न- व्यक्तित्व विकास से आपका क्या तात्पर्य है? बच्चे के व्यक्तित्व विकास को प्रभावित करने वाले कारकों को समझाइए।
- प्रश्न- भाषा पूर्व अभिव्यक्ति के प्रकार बताइये।
- प्रश्न- बाल्यावस्था क्या है?
- प्रश्न- बाल्यावस्था की विशेषताएं बताइयें।
- प्रश्न- पूर्व बाल्यावस्था में खेलों के प्रकार बताइए।
- प्रश्न- पूर्व बाल्यावस्था में बच्चे अपने क्रोध का प्रदर्शन किस प्रकार करते हैं?